क़यामत से नहीं कम इंतिज़ार-ए-वस्ल की लज़्ज़त
ख़ुदा जाने कहीं वा'दा वफ़ा होता तो क्या होता
शफ़क़ इमादपुरी
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क़यामत से नहीं कम इंतिज़ार-ए-वस्ल की लज़्ज़त
ख़ुदा जाने कहीं वा'दा वफ़ा होता तो क्या होता
शफ़क़ इमादपुरी