रोज़ इक बात मिरे दिल को सताती है 'ज़िया'
इस क़दर टूट के तुम ने उसे चाहा क्यूँ है
सय्यद ज़िया अल्वी
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रोज़ इक बात मिरे दिल को सताती है 'ज़िया'
इस क़दर टूट के तुम ने उसे चाहा क्यूँ है
सय्यद ज़िया अल्वी