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सनाउल्लाह फ़िराक़ शायरी | शाही शायरी

सनाउल्लाह फ़िराक़ शेर

3 शेर

आना ये हिचकियों का मुझे बे-सबब नहीं
भूले से उस ने याद क्या हो अजब नहीं

सनाउल्लाह फ़िराक़




दिल थामता कि चश्म पे करता तिरी निगाह
साग़र को देखता कि मैं शीशा सँभालता

सनाउल्लाह फ़िराक़




उँगलियाँ घिस गईं याँ हाथों को मलते मलते
लेकिन अफ़्सोस नविश्ता न मिटा क़िस्मत का

सनाउल्लाह फ़िराक़