है एक बात जो मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू बनती
मिले जो आप तो कम-बख़्त याद ही न रही
रज़ा नक़वी वाही
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
1 शेर
है एक बात जो मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू बनती
मिले जो आप तो कम-बख़्त याद ही न रही
रज़ा नक़वी वाही