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परवेज़ शाहिदी शायरी | शाही शायरी

परवेज़ शाहिदी शेर

8 शेर

अभी से सुब्ह-ए-गुलशन रक़्स-फ़रमा है निगाहों में
अभी पूरी नक़ाब उल्टी नहीं है शाम-ए-सहरा ने

परवेज़ शाहिदी




गीत हरियाली के गाएँगे सिसकते हुए खेत
मेहनत अब ग़ारत-ए-जागीर तक आ पहुँची है

परवेज़ शाहिदी




गुज़रा है कौन फूल खिलाता ख़िराम से
'शादाब' आज राहगुज़र पा रहा हूँ मैं

परवेज़ शाहिदी




मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
मैं वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म हूँ जो सँवर गई हवा से

परवेज़ शाहिदी




न जाने कह गए क्या आप मुस्कुराने में
है दिल को नाज़ कि जान आ गई फ़साने में

परवेज़ शाहिदी




सख़्त-जाँ वो हूँ कि मक़्तल से सर-अफ़राज़ आया
कितनी तलवारों को देता हुआ आवाज़ आया

परवेज़ शाहिदी




याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
कीजिए और न शर्मिंदा-ए-एहसाँ हम को

परवेज़ शाहिदी




ये ताज के साए में ज़र-ओ-सीम के ख़िर्मन
क्यूँ आतिश-ए-कश्कोल-ए-गदा से नहीं डरते

परवेज़ शाहिदी