ग़म-ए-आशिक़ी में गिरह-कुशा न ख़िरद हुई न जुनूँ हुआ
वो सितम सहे कि हमें रहा न पए-ख़िरद न सर-ए-जुनूँ
नून मीम राशिद
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पिला साक़िया मय-ए-जाँ पिला कि मैं लाऊँ फिर ख़बर-ए-जुनूँ
ये ख़िरद की रात छटे कहीं नज़र आए फिर सहर-ए-जुनूँ
नून मीम राशिद
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वही मंज़िलें वही दश्त ओ दर तिरे दिल-ज़दों के हैं राहबर
वही आरज़ू वही जुस्तुजू वही राह-ए-पुर-ख़तर-ए-जुनूँ
नून मीम राशिद
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