ख़ल्वत-ए-नाज़ में कुछ और ही रौनक़ होती
कोई ख़ल्वत में अगर अंजुमन-आरा होता
नाज़नीन बेगम नाज़
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मिरी उम्र-ए-गुज़िश्ता की हक़ीक़त पूछने वालो
मुझे वो उम्र उम्र-ए-राएगाँ मालूम होती है
नाज़नीन बेगम नाज़
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मिटा मिटा सा तसव्वुर है नाज़ माज़ी का
हयात-ए-नौ है अब इस उम्र-ए-राएगाँ से गुरेज़
नाज़नीन बेगम नाज़
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क़सम ख़ुदा की ये वारफ़्तगी न थी मुझ में
किसी के इश्क़-ए-सलीक़ा-शिआ'र से पहले
नाज़नीन बेगम नाज़
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सदा-बहार हो तुम और मेरी क़िस्मत हो
कोई बहार न थी इस बहार से पहले
नाज़नीन बेगम नाज़
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