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नाज़नीन बेगम नाज़ शायरी | शाही शायरी

नाज़नीन बेगम नाज़ शेर

5 शेर

ख़ल्वत-ए-नाज़ में कुछ और ही रौनक़ होती
कोई ख़ल्वत में अगर अंजुमन-आरा होता

नाज़नीन बेगम नाज़




मिरी उम्र-ए-गुज़िश्ता की हक़ीक़त पूछने वालो
मुझे वो उम्र उम्र-ए-राएगाँ मालूम होती है

नाज़नीन बेगम नाज़




मिटा मिटा सा तसव्वुर है नाज़ माज़ी का
हयात-ए-नौ है अब इस उम्र-ए-राएगाँ से गुरेज़

नाज़नीन बेगम नाज़




क़सम ख़ुदा की ये वारफ़्तगी न थी मुझ में
किसी के इश्क़-ए-सलीक़ा-शिआ'र से पहले

नाज़नीन बेगम नाज़




सदा-बहार हो तुम और मेरी क़िस्मत हो
कोई बहार न थी इस बहार से पहले

नाज़नीन बेगम नाज़