इस शहर का दस्तूर है रिश्तों का भुलाना 
तज्दीद-ए-मरासिम के लिए हाथ न बाँधूँ
मुज़फ़्फ़र इरज
    टैग: 
            | 2 लाइन शायरी   |
    
                 
                1 शेर
इस शहर का दस्तूर है रिश्तों का भुलाना 
तज्दीद-ए-मरासिम के लिए हाथ न बाँधूँ
मुज़फ़्फ़र इरज