ख़ौफ़ हर घर से झाँकता होगा
शहर इक दश्त-ए-बे-सदा होगा
मुनीर सैफ़ी
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कोई दो मिनट हिल गई थी ज़मीं
झुका ख़ाक पर सर मिनारों का था
मुनीर सैफ़ी
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'सैफ़ी' मेरे उजले उजले कोट पर
मल गया कालक दिसम्बर देख ले
मुनीर सैफ़ी
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