हम उसे अन्फ़ुस ओ आफ़ाक़ से रखते हैं परे
शाम कोई जो तिरे ग़म से तही जाती है
मोहसिन शकील
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हम उसे अन्फ़ुस ओ आफ़ाक़ से रखते हैं परे
शाम कोई जो तिरे ग़म से तही जाती है
मोहसिन शकील