बोस-ओ-कनार के लिए ये सब फ़रेब हैं
इज़हार-ए-पाक-बाज़ी ओ ज़ौक़-ए-नज़र ग़लत
मोहम्मद यूसुफ़ अली ख़ाँ नाज़िम रामपुरी
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मुट्ठी में क्या धरी थी कि चुपके से सौंप दी
जान-ए-अज़ीज़ पेशकश-ए-नामा-बर ग़लत
मोहम्मद यूसुफ़ अली ख़ाँ नाज़िम रामपुरी
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