मेरी अपनी ज़ात ही इक अंजुमन से कम न थी
इस लिए 'सज्जाद' मुझ को ख़ौफ़-ए-तन्हाई न था
मोहम्मद सज्जाद मिर्ज़ा
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मेरी अपनी ज़ात ही इक अंजुमन से कम न थी
इस लिए 'सज्जाद' मुझ को ख़ौफ़-ए-तन्हाई न था
मोहम्मद सज्जाद मिर्ज़ा