फिर क्या है जो ये रात ढली जाती है आख़िर
वो वादा-फ़रामोश हो ऐसा भी नहीं है
मेराज लखनवी
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फिर क्या है जो ये रात ढली जाती है आख़िर
वो वादा-फ़रामोश हो ऐसा भी नहीं है
मेराज लखनवी