ऐ ज़ब्त एक थोड़ी सी बाक़ी थी आबरू
रोने ने रात-दिन के मिटा दी रही-सही
मीर ताहिर अली ताहिर फ़र्रुख़ाबादी
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ऐ ज़ब्त एक थोड़ी सी बाक़ी थी आबरू
रोने ने रात-दिन के मिटा दी रही-सही
मीर ताहिर अली ताहिर फ़र्रुख़ाबादी