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मीर मुस्तहसन ख़लीक़ शायरी | शाही शायरी

मीर मुस्तहसन ख़लीक़ शेर

3 शेर

नज़्अ' में गर मिरी बालीं पे तू आया होता
इस तरह अश्क मैं आँखों में न लाया होता

मीर मुस्तहसन ख़लीक़




मिस्ल-ए-आईना है उस रश्क-ए-क़मर का पहलू
साफ़ इधर से नज़र आता है उधर का पहलू

मीर मुस्तहसन ख़लीक़




सर झुका लेता है लाला शर्म से
जब जिगर के दाग़ दिखलाते हैं हम

मीर मुस्तहसन ख़लीक़