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मख़मूर जालंधरी शायरी | शाही शायरी

मख़मूर जालंधरी शेर

3 शेर

गो उम्र भर न मिल सके आपस में एक बार
हम एक दूसरे से जुदा भी न हो सके

मख़मूर जालंधरी




मौजूदगी-ए-जन्नत-ओ-दोज़ख़ से है अयाँ
रहमत है एक बहर मगर बे-कराँ नहीं

मख़मूर जालंधरी




ये फ़ैज़-ए-इश्क़ था कि हुई हर ख़ता मुआफ़
वो ख़ुश न हो सके तो ख़फ़ा भी न हो सके

मख़मूर जालंधरी