बहुत दिनों से हिसार-ए-तिलिस्म-ए-ख़्वाब में था
तिलिस्म टूट गया ख़्वाब से निकल आया
महबूब ज़फ़र
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ख़ुदा का शुक्र है गिर्दाब से निकल आया
मैं उस के हल्क़ा-ए-अहबाब से निकल आया
महबूब ज़फ़र
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निगाह पड़ने न पाए यतीम बच्चों की
ज़रा छुपा के खिलौने दुकान में रखना
महबूब ज़फ़र
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