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महबूब ज़फ़र शायरी | शाही शायरी

महबूब ज़फ़र शेर

3 शेर

बहुत दिनों से हिसार-ए-तिलिस्म-ए-ख़्वाब में था
तिलिस्म टूट गया ख़्वाब से निकल आया

महबूब ज़फ़र




ख़ुदा का शुक्र है गिर्दाब से निकल आया
मैं उस के हल्क़ा-ए-अहबाब से निकल आया

महबूब ज़फ़र




निगाह पड़ने न पाए यतीम बच्चों की
ज़रा छुपा के खिलौने दुकान में रखना

महबूब ज़फ़र