दफ़्तर की थकन ओढ़ के तुम जिस से मिले हो
उस शख़्स के ताज़ा लब-ओ-रुख़्सार तो देखो
जाज़िब क़ुरैशी
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जब भी आता है वो मेरे ध्यान में
फूल रख जाता है रोशन-दान में
जाज़िब क़ुरैशी
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क्यूँ माँग रहे हो किसी बारिश की दुआएँ
तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो
जाज़िब क़ुरैशी