मुझे उस नींद के माथे का बोसा हो इनायत
जो मुझ से ख़्वाब का आज़ार ले कर जा रही है
ग़ज़ाला शाहिद
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
1 शेर
मुझे उस नींद के माथे का बोसा हो इनायत
जो मुझ से ख़्वाब का आज़ार ले कर जा रही है
ग़ज़ाला शाहिद