अभी कुछ और हम को तोहमतों के ज़हर पीने हैं
अभी कुछ और तुम को बद-गुमानी होने वाली है
फ़िराक़ जलालपुरी
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तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा
मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है
फ़िराक़ जलालपुरी
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