ऐ इंक़लाब-ए-नौ के उजाले कहाँ है तू
सड़कों पे मेरे शहर की कब तक धुआँ रहे
दिलकश सागरी
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ऐ इंक़लाब-ए-नौ के उजाले कहाँ है तू
सड़कों पे मेरे शहर की कब तक धुआँ रहे
दिलकश सागरी