एक दिन नक़्श-ए-क़दम पर मिरे बन जाएगी राह
आज सहरा में तो तन्हा हूँ कहीं कोई नहीं
दामोदर ठाकुर ज़की
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इश्क़ की राहों में आया है इक ऐसा भी मक़ाम
सिर्फ़ इक मैं हूँ वहाँ अहल-ए-ज़मीं कोई नहीं
दामोदर ठाकुर ज़की
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