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बद्र वास्ती शायरी | शाही शायरी

बद्र वास्ती शेर

6 शेर

आज-कल तो सब के सब टीवी के दीवाने हुए
वर्ना बच्चे तो लिया करते थे पागल के मज़े

बद्र वास्ती




अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं

बद्र वास्ती




हर शख़्स को गुमान कि मंज़िल नहीं है दूर
ये तो बताइए कि पिता किस के पास है

बद्र वास्ती




लहू का आख़िरी क़तरा निचोड़ने पर भी
तक़ाज़े रेंगते रहते हैं रंग-ओ-बू के लिए

बद्र वास्ती




फलदार दरख़्तों ने रिझाया तो मुझे भी
आज़ाद परिंदों के लिए शाख़-ओ-समर क्या

बद्र वास्ती




क़ातिल की सारी साज़िशें नाकाम ही रहीं
चेहरा कुछ और खिल उठा ज़हराब गर पिया

बद्र वास्ती