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अतुल अजनबी शायरी | शाही शायरी

अतुल अजनबी शेर

5 शेर

अजब ख़ुलूस अजब सादगी से करता है
दरख़्त नेकी बड़ी ख़ामुशी से करता है

अतुल अजनबी




किसी दरख़्त से सीखो सलीक़ा जीने का
जो धूप छाँव से रिश्ता बनाए रहता है

अतुल अजनबी




पत्तों को छोड़ देता है अक्सर ख़िज़ाँ के वक़्त
ख़ुद-ग़र्ज़ी ही कुछ ऐसी यहाँ हर शजर में है

अतुल अजनबी




सफ़र हो शाह का या क़ाफ़िला फ़क़ीरों का
शजर मिज़ाज समझते हैं राहगीरों का

अतुल अजनबी




ये रहबर आज भी कितने पुराने लगते हैं
कि पेड़ दूर से रस्ता दिखाने लगते हैं

अतुल अजनबी