कोई भी सजनी किसी भी साजन की मुंतज़िर है न मुज़्तरिब है
तमाम बाम और दर बुझे हैं कहीं भी रौशन दिया नहीं है
अनवर अलीमी
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कोई भी सजनी किसी भी साजन की मुंतज़िर है न मुज़्तरिब है
तमाम बाम और दर बुझे हैं कहीं भी रौशन दिया नहीं है
अनवर अलीमी