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अमीरुल इस्लाम हाशमी शायरी | शाही शायरी

अमीरुल इस्लाम हाशमी शेर

3 शेर

जब पढ़ा जौर ओ जफ़ा मैं ने तो आई ये सदा
ठीक से पढ़ उसे जोरू है जफ़ा से पहले

अमीरुल इस्लाम हाशमी




मिरी मजबूरियों ने नाज़ुकी का ख़ून कर डाला
हर इक गोभी-बदन को गुल-बदन लिखना पड़ा मुझ को

अमीरुल इस्लाम हाशमी




उठ्ठे कहाँ बैठे कहाँ कब आए गए कब
बेगम की तरह तुम भी हिसाबात करो हो

अमीरुल इस्लाम हाशमी