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अख़तर बस्तवी शायरी | शाही शायरी

अख़तर बस्तवी शेर

3 शेर

आसाँ नहीं इंसाफ़ की ज़ंजीर हिलाना
दुनिया को जहाँगीर का दरबार न समझो

अख़तर बस्तवी




बरसों से इस में फल नहीं आए तो क्या हुआ
साया तो अब भी सेहन के कोहना शजर में है

अख़तर बस्तवी




कीजिए किस किस से आख़िर ना-शनासी का गिला
जब किसी ने भी निगाह-ए-मो'तबर डाली नहीं

अख़तर बस्तवी