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ज़र्फ़ | शाही शायरी
zarf

नज़्म

ज़र्फ़

अब्दुल अहद साज़

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जन्नत की ख़ुनुक हवा मिली तो
ठंडक हमें नागवार गुज़री

मुँह फेर के नाक भौं चढ़ा के
इक दूजे को देखा और हम ने

चाहा कि ज़रा सी नार-ए-दोज़ख़
मिल जाए तो हाथ ताप लें हम