जन्नत की ख़ुनुक हवा मिली तो
ठंडक हमें नागवार गुज़री
मुँह फेर के नाक भौं चढ़ा के
इक दूजे को देखा और हम ने
चाहा कि ज़रा सी नार-ए-दोज़ख़
मिल जाए तो हाथ ताप लें हम
नज़्म
ज़र्फ़
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
अब्दुल अहद साज़
जन्नत की ख़ुनुक हवा मिली तो
ठंडक हमें नागवार गुज़री
मुँह फेर के नाक भौं चढ़ा के
इक दूजे को देखा और हम ने
चाहा कि ज़रा सी नार-ए-दोज़ख़
मिल जाए तो हाथ ताप लें हम