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ज़बान | शाही शायरी
zaban

नज़्म

ज़बान

मुस्तफ़ा अरबाब

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मुझे
सिर्फ़ नफ़रत की ज़बान आती है

नफ़रत का लुग़त-नवीस बन कर
मैं अपनी ज़बान भूल चुका हूँ

मोहब्बत मेरी माँ बोली थी
मगर ज़िंदा रहने के लिए

मुझे नफ़रत की ज़बान सीखनी पड़ी
मैं एक लड़की को

तलाश कर रहा हूँ
वो मुझे

मोहब्बत की मतरूक ज़बान सिखा देगी
एक लड़की

अपनी माँ बोली कभी नहीं भूलती