सबा उस से ये कह जो उस तरफ़ हो कर गुज़रता हो
क़दम ओ जाने वाले रोक मेरा हाल सुनता जा
कभी मैं भी जवाँ था मैं भी हुस्न-ओ-इल्म रखता था
वही मैं हूँ मुझे अब देख अगर चश्म-ए-तमाशा हो
जवानी की उमंगें शौक़-ए-इल्मी ज़ेहन-ओ-तब्बाई
ज़कावत हौसला हिल्म-ओ-मुरव्वत रहम-ओ-ग़म-ख़्वारी
ख़याल-ए-अक़रबा अहबाब के ऐबों की सत्तारी
क़नाअत दोस्त मुझ से दूर कोसों बुग़्ज़-ओ-तम्माई
ग़रज़ ऐसी बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मौत ने लेकिन
बना डाला मिरे आतिश-कदे को ख़ाक का तूदा
शरारों के एवज़ अब बह रहा है बर्फ़ का दरिया
मुसाफ़िर ग़ौर से सुन गोर से बचना है ना-मुम्किन

नज़्म
ज़बान-ए-दरगोर
अज़ीमुद्दीन अहमद