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यक जान दो क़ालिब | शाही शायरी
yak jaan do qalib

नज़्म

यक जान दो क़ालिब

अाज़म ख़ुर्शीद

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दोनों एक ही ज़ात में गुम थे
बातें करते हँसते खेलते

चलते चलते इक-दूजे को
देख भी लेते

आब-ओ-हवा और मिट्टी एक
एक उठान

दोनों अपने वक़्तों की आवाज़ बने थे
धुन दरीचे चेहरा-मोहरा

एक था उन का
एक सी रंगत एक ही रंग में रंगे हुए थे

फिर भी दोनों अलग अलग थे