दोनों एक ही ज़ात में गुम थे
बातें करते हँसते खेलते
चलते चलते इक-दूजे को
देख भी लेते
आब-ओ-हवा और मिट्टी एक
एक उठान
दोनों अपने वक़्तों की आवाज़ बने थे
धुन दरीचे चेहरा-मोहरा
एक था उन का
एक सी रंगत एक ही रंग में रंगे हुए थे
फिर भी दोनों अलग अलग थे
नज़्म
यक जान दो क़ालिब
अाज़म ख़ुर्शीद