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याद | शाही शायरी
yaad

नज़्म

याद

क़ाज़ी सलीम

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नर्म रेशम की तरह बनी ख़ामुशी
जा-ब-जा फिर मसकने लगी

जिस्म के आशियानों से ताइर उड़े
गर्म ताज़ा लहू में नहा कर परों को झटकने लगे

देर तक रंग उड़ता रहा