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वर्ल्ड-बैंक | शाही शायरी
world-bank

नज़्म

वर्ल्ड-बैंक

हारिस ख़लीक़

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चलो आओ
हम अपने बैंक के

बढ़ते असासों के तनासुब से
नई बिल्डिंग बनाएँ

और इस तामीर में
हम वह विसाएल काम में लाएँ

जो पस-माँदा मुमालिक के
सभी नादार जिस्मों में

ज़ख़ीरा हैं
चलो आओ

हम इन जिस्मों की सारी हड्डियों को
ख़ूब कूटें

फिर इन को पीस के गारा बनाएँ
हम इन के गोश के टुकड़े जला कर

प्लस्तर भी बनाएँ और डामर भी
मगर सारे अमल में

वो तअफ़्फ़ुन कम से कम हो जो
किसी भी चीज़ के जलने से चौ-तरफ़ा

फ़ज़ा में फूट पड़ता है
चलो आओ

हम इन जिस्मों से
एक इक रग भी खींचें

और रगों को वायरिंग के काम में लाएँ
फिर इन जिस्मों के सब आज़ा निचोड़ें

और लहू से इस इमारत का
चमकता रंग और रोग़न बनाएँ

इमारत जब मुकम्मल हो चुके तो
इन्हीं जिस्मों से कुछ के मग़्ज़ ले कर

इन्हें सरमाए की हिद्दत से पिघलाएँ
असासे और बढ़ जाएँ