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विसाल | शाही शायरी
visal

नज़्म

विसाल

मख़दूम मुहिउद्दीन

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धनक टूट कर सेज बनी
झूमर चमका

सन्नाटे चौंके
आधी रात की आँख खुली

बिरह की आँच की नीली लौ
नय बनती है

लय बनती है
शहनाई जलती रोती थी

अब सर निव्ढ़ाए
लाल पपोटे बंद किए बैठी है

नर्म गर्म हाथों की मेहंदी
एक नया संगीत सुनाती

दिल के किवाड़ पे रुक कर कोई रातों में दस्तक देता था
दिल के किवाड़ पे रुक कर वो दस्तक देता है

पट खुलते हैं
आँख से आँख दिलों से

दिल मिलते हैं
घूँघट में झूमर छुपता है

घूँघट में मुखड़े छुपते हैं
दौलत-ख़ाँ की देवढ़ी के खंडरों में

बुड्ढा नाग खड़ा रोता है
गूँगे सन्नाटे बोल उठे

घूँघट मुखड़े झूमर पायल
चमक-दमक झंकार अमर है

प्यार अमर है
प्यार अमर है

प्यार की रात की आँख उमड आती है
और दो फूल

तन्नूर-ए-बदन
शबनम पी कर सो जाते हैं