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वक़्त वक़्त की बात है | शाही शायरी
waqt waqt ki baat hai

नज़्म

वक़्त वक़्त की बात है

राशिद आज़र

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वही हम थे कि उस शहर-ए-सुकूँ में
रत-जगों की धूम थी हम से

वही हम हैं कि शहर-ए-बे-अमाँ की भीड़ में
ख़ुद अपनी तन्हाई पे हैराँ हैं

हमारा जब्र-ए-मजबूरी
हमें जब सब्र आमादा बनाता है

तो आँखें इस क़दर शो'ले उगलती हैं
कि ख़ामोशी भी इक

शोर-ए-फ़ुग़ाँ मालूम होती है