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वही लड़की | शाही शायरी
wahi laDki

नज़्म

वही लड़की

ख़ातिर ग़ज़नवी

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भूरी आँखों वाली लड़की
तुझ से पहले मेरे पास भी आती थी

अपने घर की इक इक बात सुनाती थी
मेहंदी और विस्मय से आरी काले बालों वाली अम्मी

जलते चराग़ों जैसे आँखों वाली बहनों
उन के संगतरों की फाँकों जैसे होंटों

दूध के प्यालों जैसे उजले गालों
रौशन जिस्मों

सर्व-क़दों के क़िस्से सुनाया करती थी
मेरे घर में वो ख़ुर्शीद की सूरत रोज़ उभरती थी

मुझ से मेरी नज़्में गीत और ग़ज़लें सुनती रहती थी
स्वेटर बुनती रहती थी

अक्सर मेरी ग़ज़लें गा कर मुझे सुनाया करती थी
छाया की रसिया थी वो और छाया रचाया करती थी

टुक टुक देखा करती थी
ठंडी आहें भरती थी

ऐसा ज़ाहिर करती थी
जैसे मुझ पर मरती थी

लाँबी पलकों वाली लड़की
मुझ से पहले एक सितार-नवाज़ के पास भी जाती थी

उस के रसीले नग़्मों पर नागन की तरह लहराती थी
उस की तानों और पलटों पर धुआँ धुआँ हो जाती थी

मेंढ़ जिधर ले जाती थी उस सम्त रवाँ हो जाती थी
गीत के लय बढ़ते ही तुंद बगूला बन जाती थी

तकते तकते गोया एक हयूला सा बन जाती थी
समपर दायाँ पाँव ज़मीं पर मार के वो रुक जाती थी

रुक कर यूँ लहरा कर गिरती
जैसे कोई काँच का प्याला

हाथ से छूटे
छन से टूटे

गिर कर उठती
उठ कर यूँ झुक जाती थी

जैसे कोई बन-बासी देवी
करमों का फल भोग चुकी हो

देवता के चरनों में झुकी हो
मस्ती में डग भरने वाली

सँभल सँभल पग भरती थी
ठंडी आहें भरती थी

ऐसा ज़ाहिर करती थी
जैसे उस पर मरती थी

तकते ही तकते वो एक हयूला सा बन जाती थी
उस के रसीले नग़्मों पर नागिन की तरह लहराती थी

लम्बी चोटी वाली लड़की सब को धोका देती है
मौसीक़ी की रसिया माैसीक़ारों को डस लेती है