उस सम्त न जाना जान मिरी
उस सम्त की सारी रौशनियाँ
आँखों को बुझा कर जलती हैं
उस सम्त की उजली मिट्टी में
नागिन आशाएँ पलती हैं
उस सम्त की सुब्हें शाम तलक
होंटों से ज़हर उगलती हैं
उस सम्त न जाना जान मिरी
उस सम्त के आँगन मक़्तल हैं
उस सम्त दहकती गलियों में
ज़हरीली बास का जादू है
उस सम्त महकती कलियों में
काफ़ूर की क़ातिल ख़ुश्बू है
उस सम्त की हर दहलीज़ तले
शमशान है जलते जिस्मों का
उस सम्त फ़ज़ा पर साया है
बे-मा'नी मुबहम इस्मों का
उस सम्त न जाना जान मिरी
उस सम्त की सारी फुल-झड़ियाँ
बारूद की ताल में ढलती हैं
उस सम्त के पत्थर रस्तों में
मुँह-ज़ोर हवाएँ चलती हैं
उस सम्त की सारी रौशनियाँ
आँखों को बुझा कर जलती हैं
उस सम्त के वहमों में घर कर
खो बैठोगी पहचान मिरी
उस सम्त न जाना जान मिरी
नज़्म
उस सम्त न जाना जान मिरी
मोहसिन नक़वी