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टूटे हुए तारे | शाही शायरी
TuTe hue tare

नज़्म

टूटे हुए तारे

मख़दूम मुहिउद्दीन

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नवा-ए-दर्द मिरी कहकशाँ में डूब गई
वो चाँद तारों की सैल-ए-रवाँ में डूब गई

समन-बरान-ए-फ़लक ने शरर को देख लिया
ज़मीन वालों के दिल को नज़र को देख लिया

वो मेरी आह का शोला था कोई तारा न था
वो ख़ाक-दाँ का मुसाफ़िर था माह-पारा न था

दिलों में बैठ गया तीर-ए-आरज़ू बन कर
फ़लक पे फैल गया इश्क़ का लहू बन कर

ये साकिनान-ए-फ़लक दर्द-ओ-ग़म को क्या जानें
ये ख़ाकियों के रह-ए-बेश-ओ-कम को क्या जानें

वो ग़म को पी तो गए आँसुओं को पी न सके
ज़मीं के ज़हर को पी कर वो और जी न सके

फ़लक से गिरने लगे टूट टूट कर तारे
ज़मीं पे ढेर हुए तीर-ए-आह के मारे

ये आग और भी ऊपर निकल गई होती
हरीम-ए-अर्श को छू कर निकल गई होती