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तुम्हें ग़ुस्सा आता है | शाही शायरी
tumhein ghussa aata hai

नज़्म

तुम्हें ग़ुस्सा आता है

मुस्तफ़ा अरबाब

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तुम्हें
ग़ुस्सा आता है

मेरी भूलने की आदत पर
मैं तुम्हारे पास

नज़्मों की किताब भूल जाता हूँ
तुम

उसे लौटा देती हो
मैं अपनी ऐनक

तुम्हारे पास भूल जाता हूँ
तुम

उसे लौटा देती हो
मैं अपना क़लम तुम्हारे पास भूल जाता हूँ

तुम
उसे लौटा देती हो

मुझे भी
तुम्हारी तरह

अपनी भूलने की आदत पर ग़ुस्सा आता है
मैं कुछ न कुछ

हर बार भूल जाता हूँ
इस बार

मैं अपने आप को
तुम्हारे पास भूल आया हूँ

तुम
मुझे लौटाना भूल गई हो