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तुम्हारी याद | शाही शायरी
tumhaari yaad

नज़्म

तुम्हारी याद

राजेन्द्र नाथ रहबर

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रात के सुरमई अँधेरों में
साँस लेते हुए सवेरों में

आबजू के हसीं किनारों पर
ख़्वाब-आलूद रहगुज़ारों पर

गुल्सितानों की सैर गाहों में
ज़िंदगी की हसीन राहों में

मय-ए-रंगीं का जाम उठाते वक़्त
रंज-ओ-ग़म की हँसी उड़ाते वक़्त

शादमानी में ग़म के तूफ़ाँ में
रौनक़-ए-शहर में बयाबाँ में

रक़्स करती हुई बहारों में
ख़ून-आशाम ख़ार-ज़ारों में

दोपहर हो कि नूर का तड़का
फ़स्ल-ए-गुल हो कि दौर पतझड़ का

सुब्ह के वक़्त शाम के हंगाम
बे-क़ुयूद-ए-मक़ाम बे-हंगाम

दामन-ए-दिल को थाम लेती है
कितनी गुस्ताख़ है तुम्हारी याद