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तुलू-ए-शब | शाही शायरी
tulu-e-shab

नज़्म

तुलू-ए-शब

गोपाल मित्तल

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न फ़लक पर कोई तारा न ज़मीं पर जुगनू
जो किरन नूर की है मात हुई जाती है

कारगर यूरिश-ए-ज़ुल्मात हुई है कितनी
क्या हमेशा के लिए रात हुई जाती है