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तेरे बग़ैर | शाही शायरी
tere baghair

नज़्म

तेरे बग़ैर

जौहर निज़ामी

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आ कि दिल की चाँदनी रू-पोश है तेरे बग़ैर
आ कि साज़-ए-ज़िंदगी ख़ामोश है तेरे बग़ैर

ईद हो तुम को मुबारक हाँ मगर मेरे लिए
ज़िंदगी क्या है वबाल-ए-दोश है तेरे बग़ैर

आ कि ज़हर अब बादा-ए-सर-जोश है तेरे बग़ैर
है ख़िज़ाँ-आलूदा सुब्ह-ए-गुलसिताँ तेरे बग़ैर

ख़ंदा-ए-गुल है तबीअ'त पर गराँ तेरे बग़ैर
जल्वा-ए-सर्व-ओ-समन में अब कहाँ वो दिलकशी

ग़र्क़ हसरत है दिल-ए-ना-शादमाँ तेरे बग़ैर
आ कि महरूम-ए-तरब हूँ जान-ए-जाँ तेरे बग़ैर

रो रहे हैं ग़ुन्चा-ओ-बर्ग-ओ-शजर तेरे बग़ैर
बाग़ की सारी फ़ज़ा है नौहागर तेरे बग़ैर

इक बसीत एहसास-ए-महरूमी मिरी हर साँस में
कर रहा है ज़िंदगी को मुख़्तसर तेरे बग़ैर

आ कि अब तारीक है सारा जहाँ तेरे बग़ैर
दिल को आए क्या मोहब्बत में सुकूँ तेरे बग़ैर

हो गए अक़्ल-ओ-ख़िरद नज़्र-ए-जुनूँ तेरे बग़ैर
दिल है और आठों-पहर इक वहशत-ए-बे-इख़्तियार

आँख है और बारिश-ए-सैलाब-ए-ख़ूँ तेरे बग़ैर
आ कि रुस्वा है मिरा हाल-ए-ज़बूँ तेरे बग़ैर