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तेरा पार उतरना कैसा | शाही शायरी
tera par utarna kaisa

नज़्म

तेरा पार उतरना कैसा

अख़्तर हुसैन जाफ़री

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बहते दिन का गदला पानी
कुछ आँखों में

कुछ कानों में और शिकम में ना-आसूदा दर्द की काई
इस दरिया में लम्हा लम्हा डूबने वाले

तेरा जीना मरना कैसा?
तेरा पार उतरना कैसा?

कौन सफ़ीना सोचती उम्रों के साहिल से
तोदा तोदा गिरती शामों के पायाब से तेरी जानिब आएगा

डूबने वाले!
तेरा पार उतरना कैसा?