बहते दिन का गदला पानी
कुछ आँखों में
कुछ कानों में और शिकम में ना-आसूदा दर्द की काई
इस दरिया में लम्हा लम्हा डूबने वाले
तेरा जीना मरना कैसा?
तेरा पार उतरना कैसा?
कौन सफ़ीना सोचती उम्रों के साहिल से
तोदा तोदा गिरती शामों के पायाब से तेरी जानिब आएगा
डूबने वाले!
तेरा पार उतरना कैसा?

नज़्म
तेरा पार उतरना कैसा
अख़्तर हुसैन जाफ़री