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तन्हाई | शाही शायरी
tanhai

नज़्म

तन्हाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नहीं
राह-रौ होगा कहीं और चला जाएगा

ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़

सो गई रास्ता तक तक के हर इक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिए क़दमों के सुराग़

गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो

अब यहाँ कोई नहीं कोई नहीं आएगा
Loneliness

Someone has come at long last—no, my poor heart, no one,
Just a passer-by, going somewhere else.