EN اردو
तख़ातुब | शाही शायरी
taKHatub

नज़्म

तख़ातुब

शारिक़ अदील

;

कल रात हुआ यूँ भी
इक चाँद बदन लड़की

तख़्ईल में जब उतरी
दुनिया के मसाइल ने

हर दिल की मसर्रत को
मस्लूब बना डाला

और उस से तख़ातुब पर
महसूस हुआ मुझ को

जैसे कोई सदियों की
बिछड़ी हुई दो रूहें

आपस में मुख़ातब हों
बे-रूह की क़ालिब हूँ