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तह-ए-नुजूम | शाही शायरी
tah-e-nujum

नज़्म

तह-ए-नुजूम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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तह-ए-नुजूम, कहीं चाँदनी के दामन में
हुजूम-ए-शौक़ से इक दिल है बे-क़रार अभी

ख़ुमार-ए-ख़्वाब से लबरेज़ अहमरीं आँखें
सफ़ेद रुख़ पे परेशान अम्बरीं आँखें

छलक रही है जवानी हर इक बुन-ए-मू से
रवाँ हो बर्ग-ए-गुल-ए-तर से जैसे सैल-ए-शमीम

ज़िया-ए-मह में दमकता है रंग-ए-पैराहन
अदा-ए-इज्ज़ से आँचल उड़ा रही है नसीम

दराज़ क़द की लचक से गुदाज़ पैदा है
अदा-ए-नाज़ से रंग-ए-नियाज़ पैदा है

उदास आँखों में ख़ामोश इल्तिजाएँ हैं
दिल-ए-हज़ीं में कई जाँ-ब-लब दुआएँ हैं

तह-ए-नुजूम कहीं चाँदनी के दामन में
किसी का हुस्न है मसरूफ़-ए-इंतिज़ार अभी

कहीं ख़याल के आबाद-कर्दा गुलशन में
है एक गुल कि है ना-वाक़िफ़-ए-बहार अभी