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तारिक़ की दुआ | शाही शायरी
tariq ki dua

नज़्म

तारिक़ की दुआ

अल्लामा इक़बाल

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(उंदुलुस के मैदान-ए-जंग में)
ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-असरार बंदे

जिन्हें तू ने बख़्शा है ज़ौक़-ए-ख़ुदाई
दो-नीम उन की ठोकर से सहरा ओ दरिया

सिमट कर पहाड़ उन की हैबत से राई
दो-आलम से करती है बेगाना दिल को

अजब चीज़ है लज़्ज़त-ए-आश्नाई
शहादत है मतलूब-ओ-मक़्सूद-ए-मोमिन

न माल-ए-ग़नीमत न किश्वर-कुशाई
ख़याबाँ में है मुंतज़िर लाला कब से

क़बा चाहिए उस को ख़ून-ए-अरब से
किया तू ने सहरा-नशीनों को यकता

ख़बर में नज़र में अज़ान-ए-सहर में
तलब जिस की सदियों से थी ज़िंदगी को

वो सोज़ उस ने पाया उन्हीं के जिगर में
कुशाद-ए-दर-ए-दिल समझते हैं उस को

हलाकत नहीं मौत उन की नज़र में
दिल-ए-मर्द-ए-मोमिन में फिर ज़िंदा कर दे

वो बिजली कि थी नारा-ए-ला-तज़र में
अज़ाएम को सीनों में बेदार कर दे

निगाह-ए-मुसलमाँ को तलवार कर दे