वतन के दर्द निहाँ की दवा सुदेशी है
ग़रीब क़ौम की हाजत-रवा सुदेशी है
तमाम दहर की रूह-ए-रवाँ है ये तहरीक
शरीक हुस्न-ए-अमल जा-ब-जा सुदेशी है
क़रार-ए-ख़ातिर-ए-आशुफ़्ता है फ़ज़ा उस की
निशान-ए-मंज़िल-ए-सिद्क़-ओ-सफ़ा सुदेशी है
वतन से जिन को मोहब्बत नहीं वो क्या जानें
कि चीज़ कौन बिदेशी है क्या सुदेशी है
उसी के साया में पाता है परवरिश इक़बाल
मिसाल-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा सुदेशी है
उसी ने ख़ाक को सोना बना दिया अक्सर
जहाँ में गर है कोई कीमिया सुदेशी है
फ़ना के हाथ में है जान-ए-ना-तवान-ए-वतन
बक़ा जो चाहो तो राज़-ए-बक़ा सुदेशी है
हो अपने मुल्क की चीज़ों से क्यूँ हमें नफ़रत
हर इक क़ौम का जब मुद्दआ' सुदेशी है
नज़्म
स्वदेशी तहरीक
तिलोकचंद महरूम