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स्वदेशी तहरीक | शाही शायरी
swa-deshi tahrik

नज़्म

स्वदेशी तहरीक

तिलोकचंद महरूम

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वतन के दर्द निहाँ की दवा सुदेशी है
ग़रीब क़ौम की हाजत-रवा सुदेशी है

तमाम दहर की रूह-ए-रवाँ है ये तहरीक
शरीक हुस्न-ए-अमल जा-ब-जा सुदेशी है

क़रार-ए-ख़ातिर-ए-आशुफ़्ता है फ़ज़ा उस की
निशान-ए-मंज़िल-ए-सिद्क़-ओ-सफ़ा सुदेशी है

वतन से जिन को मोहब्बत नहीं वो क्या जानें
कि चीज़ कौन बिदेशी है क्या सुदेशी है

उसी के साया में पाता है परवरिश इक़बाल
मिसाल-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा सुदेशी है

उसी ने ख़ाक को सोना बना दिया अक्सर
जहाँ में गर है कोई कीमिया सुदेशी है

फ़ना के हाथ में है जान-ए-ना-तवान-ए-वतन
बक़ा जो चाहो तो राज़-ए-बक़ा सुदेशी है

हो अपने मुल्क की चीज़ों से क्यूँ हमें नफ़रत
हर इक क़ौम का जब मुद्दआ' सुदेशी है