रात फैलती गई है
दूर दूर जंगलों में
रास्ता टटोलती
हवा की साएँ साएँ
जैसे साँस रुक रही हो
ओस सोगवार
ज़ार ज़ार रो रही हो
लाला-ज़ार में गुलों की पतियाँ
बिखर के राख हो रही हूँ
आख़िरी उम्मीद
टिमटिमा के बुझ गई है
वक़्त बह चुका है
थम गया है
साएँ साएँ रुक गई है
नज़्म
सुकूत
अबरारूल हसन