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सुकून | शाही शायरी
sukun

नज़्म

सुकून

अख़्तर-उल-ईमान

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न ज़हर-ए-ख़ंद लबों पर, न आँख में आँसू
न ज़ख़्म-हा-ए-दरूँ को है जुस्तुजू-ए-मआल

न तीरगी का तलातुम, न सैल-ए-रंग-ओ-नूर
न ख़ार-ज़ार-ए-तमन्ना में गुमरही का ख़याल

न आतिश-ए-गुल-ए-लाला का दाग़ सीने में
न शोरिश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ न आरज़ू-ए-विसाल

न इश्तियाक़, न हैरत, न इज़्तिराब, न सोग
सुकूत-ए-शाम में खोई हुई कहानी का

तवील रात की तन्हाइयाँ नहीं बे-रंग
अभी हुआ नहीं शायद लहू जवानी का

हयात ओ मौत की हद में हैं वलवले चुप-चाप
गुज़र रहे हैं दबे पाँव क़ाफ़िले चुप-चाप