न ज़हर-ए-ख़ंद लबों पर, न आँख में आँसू
न ज़ख़्म-हा-ए-दरूँ को है जुस्तुजू-ए-मआल
न तीरगी का तलातुम, न सैल-ए-रंग-ओ-नूर
न ख़ार-ज़ार-ए-तमन्ना में गुमरही का ख़याल
न आतिश-ए-गुल-ए-लाला का दाग़ सीने में
न शोरिश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ न आरज़ू-ए-विसाल
न इश्तियाक़, न हैरत, न इज़्तिराब, न सोग
सुकूत-ए-शाम में खोई हुई कहानी का
तवील रात की तन्हाइयाँ नहीं बे-रंग
अभी हुआ नहीं शायद लहू जवानी का
हयात ओ मौत की हद में हैं वलवले चुप-चाप
गुज़र रहे हैं दबे पाँव क़ाफ़िले चुप-चाप
नज़्म
सुकून
अख़्तर-उल-ईमान